साँगी मांगेराम का साहित्यक परिचय |
1 . जीवन परिचय :-
हरियाणा की सांग परंपरा में पंडित लख्मीचंद के बाद पंडित मांगेराम का नाम आदरपूर्वक लिया जाता है | उन्होंने सांग विधा को नयी दिशा और नया आयाम प्रदान किया | मांगेराम का जन्म सोनीपत जिले के सुसाणा ग्राम में जुलाई , 1905 में माना जाता है | इनके पिता का नाम अमरसिंह था | श्री मांगेराम अपने पांचो भाइयो में सबसे बड़े थे | मांगेराम को इनके नाना श्री उदमीराम ने गोद ले लिया | इस प्रकार मांगेराम गाँव सुसाणा में जन्म लेकर भी पाणचिवासी हो गए | इस सम्बन्ध में उन्होंने सव्य लिखा है –
” पाणचि के मंह रहण लाग्गया व् मांगेराम सुसाणा का |
मांगेराम रह्या मामा के बीस जिल्या म्ह रोला से |
पाणसी म्ह रहण लाग्गया लेके जन्म सुसाणे |”
श्री मांगेराम ने आरंभिक स्तर की सिक्षा ग्रहण की है | बाद में वे मोटरगाड़ी ले आये थे और साथ ही कर्षक का काम करते थे | वे लख्मीचंद के सांगो से बहुत प्रभावित हुए थे | जहा कही भी उनके सांग होते , वे वहा अवश्य पहुच जाते | उन्होंने इस तथ्य को सवय सवीकार किया है –
” पहले मोटरकार चलाई , फेर सांग लिया लख्मीचंद के डेरे में |”
पंडित मांगेराम आजीवन सांग रचना करते रहे | वे बचपन से ही समाज सेवा व समाज के कल्याण कार्यो में रूचि रखते थे और उनकी यह रूचि आजीवन बनी रही | यह महान लोकनाट्यकार , लोकधारा – कवी और अभिनेता सन 1968 में इस नश्वर संसार को त्यागकर प्रभु चरणों में लीन हो गए |
2 . प्रमुख रचना :-
पंडित मांगेराम ने अनेक विषय को आधार बनाकर लगभग चालीस सांगो की रचना की है | इनके प्रमुख सांग है – जयमल फता , कृषण जन्म , नल दमयंती , सकुन्तला दुष्यंत , नो रत्न , रजा अम्ब , चन्द्र हान्स , शिवाजी का बयाह , रुक्मणि का बयाह , हकीकत राय , सती सुकन्या , सभा पर्व , गोपीचंद , जादू की रात , भगत सिह आदि |
3 . काव्यगत विशेषता :-
साँगी मांगेराम बहुमुखी प्रतिभा वाले कवी थे | उन्होंने विशद लोक साहित्य की रचना की है | उनके काव्य की निमंलिखित प्रमुख विशेषता है –
(i) विषय की मोलिकता :-
पंडित मांगेराम के सांग साहित्य की सबसे बड़ी विशेषता है की उनके सांगो की विषय मोलिक है | गुरु महिमा हो या सामाजिक घटना का चित्रण अथवा रास्ट्रीय चेतना या फिर धार्मिक छेत्र , सभी विषयों में मोलिकता विघमान है | पुराणिक एव एतहासिक विषय का चितर्ण करते समय भी उन्होंने उस काल की कथा का आधार ग्रहण करके भी उसे मोलिक रूप से प्रस्तुत किया है | उनकी सबसे बड़ी विशेषता यह है की उन्होंने पुराणिक एव एतहासिक विषयों को अपने युग के अनुकूल ढालकर अर्धार्थ युगीन प्रसंगानुसार रूपं में प्रस्तुत किया है |
(ii) विविध विषयों का चित्रांकन :-
साँगी मांगेराम के सांगो में जहा विषय की मोलिकता के दर्शन होते है , वहा विविध विषयों को उन्होंने अपने सांगो में निपुन्तापुर्वक स्थान दिया है उन्होंने पुराणिक व् एतहासिक विषयों पर ही अपनी लेखनी नहीं चलाई अपितु अनेक विषयों पर सांग लिखकर सिद्ध कर दिखाया की सांगो में किसी भी विषय का चितर्ण किया जा सकता है | यह योग्यता केवल मांगेराम में थी | इस द्रिस्टी से वे पंडित लख्मीचंद से भी उच्च स्थान पर विराजमान है |
एक सजग एव चेतन कवी की भांति उन्होंने सामाजिक समास्यो , हर प्रकार की धार्मिक , राजनितिक , आर्थिक विषमताओ से सम्बंधित घटनाओं का मार्मिक चितर्ण किया है अत सपष्ट है की मांगेराम ने अपने सांगो को पुराणिक व् एतहासिक विषयों तक ही सिमित न रखकर विविध विषयों का सजीव एव स्टिक चित्रांकन किया है | कवी ने आधुनिक युग में धन सम्पन्ति को सुख का साधन बताया है | उस सम्बन्ध में उनकी यह पंकतिया देखिये –
” नोकर चाकर महल हवेली , माल खजाने धन की थेली |
बरतण खातर पिसा धेली , उनका सुख हो से ||”
(iii) प्रबन्धाताम्कता :-
मांगेराम के सांगो में प्रब्न्धातामक सेली का पूरणता से निर्वाह हुआ है | उधारान्नार्थ शकुंतला दुष्यंत शीर्षक को लिया जा सकता है | इसमें प्रब्न्धातामक का सफलतापूर्वक निर्वाह किया गया है | कथा के प्राम्भ में सकुन्तला और दुष्यंत की भेंट होती है परसपर दोनों आकर्षित होकर गान्धर्व विवाह कर लेते है | दुष्यंत सकुन्तला को अपनी अगुनठी देकर यह कहकर हस्तिनापुर चला जाता है की वह जल्दी वापिस आएगा | सकुन्तला सदा ही दुष्यंत की यादो में खोई रहती है | और आश्रम में आये दुर्वाषा ऋषि की अवह्लना कर देती है | अपमानित ऋषि सकुन्तला को श्राप दे देते है और दुष्यंत उसे भूल जाता है कई वर्ष बाद सकुन्तला के पुत्र भरत को दुष्यंत हस्तिनापुर ले जाकर राजा बना देता है | अंत स्पस्ट है की कवी मांगेराम ने सांग परंपरा में प्रब्न्धातामकता का पूर्ण निर्वाह करते हुए इसे आगे ही नहीं बढ़ाया , अपितु इसमें पर्याप्त सुधार भी किया गया |
4 . भाषा शेली :-
मांगे राम भाषा के बड़े भारी ममग्य थे |उन्होंने अपने काव्यो में भाषा की प्रज्लता और मुहावरे के प्रयोग में तो लख्मीचंद जेसे सांग सम्राट को भी पीछे छोड़ दिया है | उन्होंने रागिनियो को सुत्र्बन्ध किया | लोकोकित प्रयोग का यह उधारण देखिये –
” मांगण गए सो मर रहे , मरे सो मांगण जा |
उन ते पहला वे मरजया , हुए में करज्या ना ||”
उपयुक्त पंक्तियों में लोकोकित का स्टिक प्रयोग देखते ही बनता है |
इस प्रकार मुहावरे के प्रोयोग में भी मांगेराम बेजोड़ है | मुहावरे के प्रयोग के लिए निमंकित पंकतिया देखते ही बनती है –
वहा धोबी क्या करे जहा नंगो का गाम |
के वेश्या की प्रीत जगत में के बादल की छा |
आए का आदर नहीं चलते ही बुझे न बात |
तुलसी ऐसे मित्र के मारो सिर में लात |
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खडया डरेवा खेत में खावे ना खावंण दे |
मांगेराम इसे माणस ने ते काग कुते खां ||”
इन पंकतियो में जहाँ लोकोक्तियाँ एव मुहावरों का सार्थक प्रोयग है | वहा लोक संस्कृत के दर्शन भी होते है नंगो का गाम मुहावरा देखते ही बनता है |
अंत : निष्कर्ष रूप से कहाँ जा सकता है की मांगेराम के सांगो में लोकभासा का सफल प्रयोग किया गया है | कवी ने अपनी भाषा को अलंकारों एंव छन्दों में सजाया है |और मुहावरों एंव लोक्कोक्तियों के प्रयोग से उसमे सार्थकता एंव लोकधर्मिता को संजोया है | उनके सांगो का भाव पक्ष जितना विस्तृत एवं व्यापक है , उसका कला पक्ष भी उतना ही सक्षम है |