दीपचन्द सांगी का साहित्यक परिचय |
1 . जीवन परिचय :-
दीपचन्द हरियाणा के प्रमुख सांग लेखको में से एक है | उन्होंने अपनी सांग सम्बंधित रचनाओं के माध्यम से सांग कला को नया मोड़ दिया है | उनका जन्म हरियाणा के गाँव सेरिखणडा में हुआ | उनका समय उनसवी बीसवी शदी के मध्य माना जाता है |पंडित दीपचन्द संस्कृत एव काव्यशास्त्र के अच्छे ज्ञाता थे | श्रीमदभागवत में उनकी बहुत रूचि थी | सांग लिखने से पूर्व वे श्रीमदभागवत की कथाये सुनाया करते थे | उनकी वाणी में एसा रस था की उन्हें सुने के लिए जन समूह उमड़ पड़ता था | एक लोक कहावत के अनुसार पंडित दीपचंद कुरुछेत्र में अपने किसी यजमान के कल्याण के लिए श्रीमदभागवत का एक सप्सप्ताह का पाठ कर रहे थे
उन्हें सुने के लिए बहुत संख्या में लोग उपस्थित थे | उसी जगह थोड़ी दूर पर हो रहे सांग में ढोलक , सारंगी आदि की आवाज सुनकर लोग सांग देखने चले गए | इस बात का उन्हें बहुत दुःख हुआ , और तब से उन्होंने अपनी पोंथी पत्री उठाकर रख दी और अपनी एक सांग मंडली बना ली | हरियाणवी साहित्य के अनत साक्ष्यो से पता चलता है की पंडित दीपचंद का सांग के मंच पर आगमन किशनलाल भांट के बाद हुआ है | उनके लगभग 200 वर्षो बाद ये सांग के छेत्र में आए | महान सांगी छाजूराम उनके गुरु बातये जाते है |
प्रथम विश्वयुद्ध में पंडित दीपचंद ने अग्रेजो की सेना में भर्ती होने के लिए हरियाणा के युवाओं को अपने सांगो द्वारा प्रेरित किया था | यही कारण है अंग्रेजी सरकार ने उन्हें ‘ राय बहादुर ‘ की उपाधि से समानित किया था |
2 . प्रमुख रचनाए :-
पंडित दीपचंद बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे | वे जहाँ महान कथावाचक थे , वहा महान सांग लेखक भी थे | उन्होंने हरियाणवी भाषा में अनेक लोक नाट्य (सांग) लिखकर हरियाणवी साहित्य परंपरा को आगे बढाया और उसमे अनेक सुधार भी किये | उनकी प्रमुख रचनाएँ है –
हरिश्चंदर , उतान्पाद , ज्यानी चोर , राजा भोज , गोपीचंद महाराज आदि |
3 . काव्यगत विशेषताए :-
पंडित दीपचंद के काव्य की प्रमुख विशेषताएँ निमंलिखित है –
(i) पुराणिक विषयवस्तु :-
पंडित दीपचंद के सांगो के अध्यन से पता चलता है की उन्होंने अपने सांगो में लोक प्रशिध पोराणिक कथाओ को आधार बनाया है | उनकी सबसे बड़ी विशेषता यह है की उन्होंने पोराणिक विषयों को अपने युगीन जीवन में जोड़कर उन्हें रोचक और आकर्षक बना दिया है | इसके साथ साथ इनके सांगो में प्रभनधात्मकता का भी पूरण निर्वाह हुआ है | इनके सांगो में मूल कथाओ को अधिक तोड़ने मरोड़ने का प्रयास नहीं किया गया है |
(ii) युग चेतना :-
पंडित दीपचंद के सांगो की अन्य प्रमुख विशेषता है – युग चेतना | वे समाज के महान अधेयता थे |समाज में व्यापत अच्छाई और बुराई को उन्हें बहुत निकट से देखा था | इसलिए उनके काव्य में युगीन चेतना की छाप देखि जा सकती है | उधारणअर्थ देश में सव्तनत्रता का आन्दोलन आरम्भ ही हुआ था की प्रथम विशव युद्ध आरम्भ हो गया | भारत के राजनीतिकज्ञ के महात्मा गांधी ने अग्रेजो की सहायता करने का निर्णय लिया ताकि वे युद्ध में विजयी होने पर भारतीयों को सव्तनत्रता का अधिकार देगे | पंडित दीपचंद सांगी भी इस प्रभाव से अछूते ना रहे और उन्होंने अपने सांगो के माध्यम से हरियाणा के नव युवको को अंग्रेजी सेना में भर्ती होने के लिए प्रेरित किया |
” भरती होल रे थारे बाहर खड़े रंगरूट |
अड़े मिले तने सूखे टिकड़ औठे मिले बिस्कुट |
भरती होल रे थारे बाहर खड़े रंगरूट ||”
(iii) भक्ति भावना :-
कहा जा चुका है की पंडित दीपचंद की श्रीमदभागवत में पूरण आस्था थी | वे सचे मन से श्रीमदभागवत की कथा कहते थे | उन्होंने भले ही सांग लिखने और सांग खलेने को अपने वयाव्साए के रूप में अपना लिया हो लेकिन उनकी आस्था प्रभु के प्रति बराबर बनी रही | उनकी रचनाए इसका परमाण है –
” पद यो दीपचंद ने गाया , नर भक्ति बिन सुनी काया |”
(iv) गेय तत्व :-
पंडित दीपचंद का सम्पुरण काव्य विभीन राग रागनियो पर आधारित है | उन्होंने अपने सांगो में विविध वाघ यंत्रो – सारंगी , ढोलक , नक्कारा , हारमोनियम , अदि का प्रयोग किया है | उन्होंने अपने काव्यो में चोबोला छन्द के स्थान पर काफिया छंद का सफल प्रयोग कर सांग शेली को नयी दिशा प्रदान की है | उनके सम्पूर्ण काव्य में तुक पर विशेष ध्यान दिया गया है | इसे उनके काव्य के गायन में माधुर्य गुण का समावेश हुआ है | राग्बध कथन की प्रभावोत्पादकता के कारण ही बागी जाट मंत्र मुग्ध होकर सेना में भर्ती होने लगे थे |
(v) अभिनेयता :-
पंडित दीपचंद स्वय एक सफल अभिनेता थे | उन्होंने अपने युग के सांगो के अभिनीय की कमियों को ध्यानपूर्वक देखा तथा उन्हें दूर करने का प्रयास किया | उन्होंने अपने सांगो में स्त्री पात्रो को भी सम्लित किया और उनके वेशभूषा भी निश्चित की | उन्होंने नृत्य में लास्य के स्थान पर तांडव नृत्य को प्रमुखता दी | वे अपने सांगो में संगीत और अभिनीय के कारण ही प्रशिधि प्राप्त कर सके थे | उन्हें हरियाणा में श्रेषठ लोकगायक माना जाता है |
4 . भाषा शेली :-
पंडित दीपचंद भाषा के मर्मज्ञ थे | वे भाषा के महत्व को भली भाँती जानते थे | उन्होंने अपने काव्य में जनभाषा का प्रयोग किया है | उसमे उन्होंने लोक्तातव की प्रमुखता की और विशेस ध्यान दिया है | उन्होंने तत्सम , तद्भव , देशज व् विदेशी सब्दो को हरियाणवी भाषा के अनुकूल ढालकर प्रयोग किया ताकि वे इस लोकभाषा में पूर्णत समाहित हो सके | उन्होंने भाषा के माधुय गुण की और विशेस ध्यान दिया है | ताकि वह उनकी गायन शेली में ढल सके | उनके काव्य में भाषा और संगीत का मणिकंचन का संयोग है |
निष्कर्ष रूप से कहा जा सकता है की पंडित दीपचंद ने हरियाणवी सांग में विषय की द्रष्टि से ही नहीं , अपितु उसमे अभिनय एव लेखन शेली की द्रष्टि से भी सुधार किया है | उन्हें सांग परम्परा को आगे बढाने का श्रेय सदा प्राप्त रहेगा | ओजगुण समावेश से उनकी वाणी की युग चेतना , राष्ट्रीय भावना से भी परिपुँर्ण है |