संतकवि जेतराम का साहित्यक जीवन परिचय |
1 . जीवन परिचय :-
संतकवि जेतराम हरियाणा के प्रमुख संत कवी है | इन्होने हरियाणवी भषा में अपने उपदेशो को जन जन तक पहुचाया है | हरियाणा की संतकवि परंपरा में इनका नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है | जहा इन्होने संत परमपरा को आगे बढाया है वाही हरियाणवी कवयधारा को भी अपनी रचनाओ में समृद्ध किया है | हरियाणवी काव्य परंपरा के विकास में इनके द्वारा दिए गए योगदान के लिए इन्हें सदा याद रखा जाएगा
संतकवि जेतराम का जन्म सन 1737 में हुआ था |इनका पालन पोषण रोहतक जिले के करोंथा गाँव में हुआ | जेतराम संत गरीबदास के पुत्र थे| इनका जीवन अंत्यंत साधारण था | इनकी रचनाओ के अंत साक्ष्य से पता चलता है की जेतराम केवल संत ही नहीं एक कर्मठ व्यक्ति , त्याग्सील भक्त , देशभक्त , समाज शुधारक भी थे | इनका व्यक्तित्व बहुमुखी था | इनकी वाणी विभिन शीर्षकों में संकलित है – हरियाणा की महिमा , सब्द , होली आदि |
2 . काव्यगत विशेषता :-
पठित काव्यांशो के आधार पर कहा जा सकता है की संतकवि जेतराम पहले संत और बाद में कवी थे | उन्होंने अपनी कविता को अपने उपदेशो के प्रचार प्रसार का माध्यम बनाया था | इनके काव्य की प्रमुख विशेषता निमंलिखित है –
(i) भक्ति भावना :-
जेतराम की वाणी में उनकी भक्ति भावना का परिचय मिलता है | उन्होंने जहा निर्गुण इश्वर की उपासना की है , वंहा ‘ होली ‘ प्रसंग में उनकी सगुण भक्ति भावना के दर्शन भी होती है | उन्होंने इश्वर्रोपासन के साथ साथ अहंकार , घमंड , इछाओ , के त्याग पर बल दिया है | उनकी भक्ति भावना में सदाचार के महत्व को स्थान दिया गया है | उन्होंने राम नाम समरण पर बल देते हुए कहा है –
” राम नाम सा मित न कोई | राम नाम से आनद होई |
राम भजन प्रहलाद कमाया | खम्भ बंधा तत्काल छुटाया ||”
(ii) पोराणिक प्रसंगो का वर्णन :-
संतकवि जेतराम ने अपने काव्य में पोराणिक प्रसंगो का अंत्यंत सुन्दर उलेख किया है | वे अपने मत के परमाणसवरूप पोराणिक अन्तकथाओ को प्रस्तुत करते है | पाठ्यपुस्तक में संकलित काव्यांशो में उन्होंने राम नाम की महिमा को शिध करने के लिए परहाद , गज ग्राह , द्रोपदी आदि पोराणिक प्रसंगो को प्रस्तुत किया है | उनका कथन है –
” गज और ग्राह राम जप लिया | सिंध डूबते अस्थिर किया |
द्रोपद सुता को टेर सुनाई | एक पलक में पंहुचे आई |
(iii) जीवन की अस्थिरता का वर्णन :-
संतकवि जेतराम ने मानव जीवन को अस्थिर और नश्वर कहा है | इसलिए वे मानव को समय रहते इश्वर का नाम जपने की प्रेरणा देते है | उनका कहना है की इस संसार में कोई भी सदा के लिए नहीं रहता| एक न एक दिन सब यहाँ से चले जायेगे | मानव जीवन का अस्तित्व तो बादल की छाया के भान्ति अस्थिर है | जो वश्तु अस्थिर है उसका घमंड केसा ? इसलिए अभिमान व् घमंड को त्याग कर नाम समरण करना चाहिए ; यथा –
” यहाँ नहीं रहना चलना भाई | घुमे केसा भेव बनाई |
बादल केसी छाह पिरानी | राम नाम सुमरो अभिमानी ||”
(iv) संसार की सवार्थ्पर्ता का उलेख :-
संतकवि जेतराम ने संसार व् सांसारिक नातो को सवार्थ पर आधारित बताया है | इसलिए ऐसे नातो एव संबंधो को त्यागकर इश्वर भजन में ध्यान लगाने का उपदेश दिया है | वे कहते है की अंत समय में पत्नी और पुत्र भी पास नहीं आते अधार्थ साथ नहीं देते –
” घर की नारी भई उदास पिछले आरहे है सवांस |
पुत्र पास ना आवे जेतराम निकट ना जावे ||”
(V) भजन व् नाम समरण :-
कवीजेतराम के मतानुसार इश्वर प्राप्ति के लिए भजन व् नाम समरण का बहुत महत्व है | राम नाम के समरण के बिना जीवात्मा सांसारिक बन्धनों से मुक्ति नहीं पा सकती | कवी कहता है –
” राम भजन बिन करम ना छुटे टूटे नहीं बंधाना |
ताते राम सुमर ले रे बीरा देसों धुर्व प्रवाना ||”
(vi) गुरु का महत्व :-
संतकवि जेतराम ने अन्य भक्त कवियों की भाँती गुरु के महत्व को सपष्ट सब्दो में सवीकार किया है | उन्होंने बताया है की गुरु के बिना इश्वर की प्राप्ति नहीं हो सकती | सतगुरु ही सब्द सिन्धु का मार्ग बताता है , जिसमे भक्त इश्वर भक्ति प्राप्त करके संसार रूपी बन्धनों से मुक्ति प्राप्त करता है | होली के प्रंसग में संत जेतराम ने लिखा है –
” सिर पर गगरी लिए सखी री जल ढूढत सब जग धाई |
भटकत फिरि अनत लोकन में , गुरु बिन खोज न पाई ||”
3 . भाषा शेली :-
संत कवी जेतराम के काव्य में अंत्यंत सरल भाषा का प्रयोग किया गया है | उनकी भषा में भावो को अभिव्यंजित करने की अपूर्व शमता है | उन्होंने अपने काव्य की भषा में हरियाणवी लोक भाषा के सब्दो का सफल प्रयोग किया है | उनके काव्य की भाषा जन भाषा है | उन्होंने अपने युग में प्रचलित जन भाषा को अपनाया है और लोक प्रचलित छंदों एव अलंकारो का सार्थक पर्योग किया है | उनके काव्य की भाषा और चोपाई छंद की यह बानगी देखिये –
” राम नाम सा मीत ना कोई | राम नाम से आनंद होई |
राम भजन प्रहलाद कमाया |संभ बंधा तत्काल छुटाया ||”
भाषा की सरलता और पर्वाह्म्य का यह उधारण भी द्रस्थ्व्य है –
” ब्रेहिनी कहे सुना हे सखियों मेरा ओसर नाही |
वे सब अपने पि संगी खेले मेरा पि घर नाही ||”
अंत ;- निष्कर्ष रूप से कहा जा सकता है की संत कवि जेतराम के काव्य का भाव पक्ष जितना विकशित एव विस्तृत है , उसका कला पक्ष भी उतना ही समृद्ध है | दोनों में सुन्दर सामजस्य है |